क्यों है खाटू श्यामजी मंदिर की इतनी मान्यता

क्यों है खाटू श्यामजी मंदिर की इतनी मान्यता

देश विदेश के हिन्दुओं और अन्य भक्तों में खाटू श्याम मंदिर की इतनी मान्यता क्यों है – आइये जानते हैं, इसके कारण

राजस्थान के सीकर स्थित खाटू श्याम जी का मंदिर देश-विदेश में प्रसिद्ध है. इस मंदिर के बारे में विस्तार से जानिये इस लेख में.

खाटू श्याम जी को भगवान कृष्ण का एक अवतार माना गया है. खाटू श्याम बाबा का प्रसिद्ध मंदिर  राजस्थान राज्य के सीकर जिले के खाटू ग्राम में स्थित है. इस मंदिर पर श्रद्धालुओं की अत्यधिक आस्था है. यहाँ प्रत्येक वर्ष होली के शुभ अवसर पर खाटू श्याम जी का मेला लगता है. इस मेले में देश-विदेश से कई भक्तजन बाबा खाटू श्याम जी के दर्शन के लिए आते हैं. खाटू श्याम बाबा के मंदिर की इन मान्यताओं के पीछे महाभारत काल की एक पौराणिक कथा है.

खाटू श्यामजी 

खाटू श्याम बाबा के मंदिर का इतिहास 

महाभारत काल में महाराज भीम के पौत्र एवं घटोत्कच के पुत्र “बर्बरीक” के रूप में खाटू श्याम बाबा ने अवतार लिया. बर्बरीक बचपन से ही अत्यधिक वीर एवं बलशाली योद्धा थे. बर्बरीक के इसी बल कौशल को देखकर अग्नि देव ने उन्हें एक विशिष्ट धनुष दिया एवं भगवान् शिव ने उन्हें वरदान स्वरुप तीन बाण दिए. इस वरदान के कारण बर्बरीक “तीन बाण धारी” कहे जाने लगे. महाभारत के भयावह युद्ध को देखकर बर्बरीक ने युद्ध का साक्षी बनने की इच्छा प्रकट की. वह अपनी माँ से युद्ध में जाने की अनुमति ले तीनों बाण लेकर युद्ध की ओर निकल पड़े.

जब बर्बरीक युद्ध में जा रहे थे तभी भगवान श्री कृष्ण ने उनकी परीक्षा लेने के लिए उनसे कहा कि केवल तीन तीर से कोई कभी युद्ध जीत नहीं सकता. तब बर्बरीक ने तीनों तीरों का महत्व बताते हुए कहा कि उनका पहला तीर निश्चित स्थानों पर निशान बनाएगा एवं दूसरा व तीसरा तीर उन स्थानों को क्रमशः सुरक्षित एवं तबाह कर सकतें हैं. 

खाटू श्यामजी मंदिर

बर्बरीक को प्राप्त इस वरदान के कारण कौरव व पांडव दोनों ही उन्हें अपने पक्ष में रखना चाहते थे. तब श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण स्वरुप धरण कर दान स्वरुप बर्बरीक से उनका सिर माँगा. उनकी इस विचित्र मांग के कारण बर्बरीक ने उनसे उन्हें अपने असली रूप में आने को कहा. तब श्री कृष्ण प्रकट हुए एवं उन्होंने बर्बरीक को उस युद्ध का सबसे वीर क्षत्रिय व योद्धा बताते हुए उनसे कहा कि युद्ध में सबसे वीर व क्षत्रिय योद्धा को सर्वप्रथम बलि देना अति आवश्यक है. अतः उनके ऐसे वचन सुनकर बर्बरीक ने अपना सिर काटकर श्री कृष्ण को दानस्वरूप दे दिया. तब भगवान् श्री कृष्ण ने उनके इस अद्भुत दान को देखकर उन्हें वरदान दिया कि उन्हें सम्पूर्ण संसार में श्री कृष्ण के नाम “श्याम” रूप में जाना जाएगा.

खाटू श्याम मंदिर का महत्व

भगवान् श्री कृष्ण ने युद्ध की समाप्ति पर बर्बरीक का सिर रूपवती नदी को समर्पित कर दिया. तब कलयुग में एक समय खाटू गांव के राजा के मन में आए स्वप्न और श्याम कुंड के समीप हुए चमत्कारों के बाद फाल्गुन माह में खाटू श्याम मंदिर की स्थापना की गई. शुक्ल मास के 11 वे दिन उस मंदिर में खाटू बाबा को विराजमान किया गया. 1720 ईस्वी में दीवान अभयसिंह ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया और तब से आज तक उस मंदिर की चमक यथावत है. श्याम कुंड की मान्यता देश-विदेश में है. ऐसा माना जाता है कि जो श्रद्धालु इस कुंड में स्नान करता है उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है. इस मंदिर की मान्यता बाबा के अनेक मंदिरो में सर्वाधिक रही है. 

खाटू श्यामजी की यात्रा

इस तरह बरसों से खाटू श्याम जी के रूप में भगवान श्रीकृष्ण अपने भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करके उन्हें अनुग्रहित करते आ रहे हैं.क्यों है खाटू श्यामजी मंदिर की इतनी मान्यता

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

Translate »
  1. ब्रेकिंग न्यूज़: ऊ०प्र०- जिले की हर छोटी बड़ी खबर लाइव देखने के लिए
  2. जुड़े रहे इंडोनेपालन्यूज़ के फेसबुक पेज से, शहर के हर छोटी बड़ी खबर हम आपको लाइव दिखाएंगे