श्रावण मास का जाने वैज्ञानिक महत्व–स्वामी अखिलेश्वरानंद सरस्वती

श्रावण मास का जाने वैज्ञानिक महत्व--स्वामी अखिलेश्वरानंद सरस्वती

श्रावण मास का जाने वैज्ञानिक महत्व–स्वामी अखिलेश्वरानंद सरस्वती

क्यो होता है शिव पर जलाभिषेक ?

कथा आती हैं कि एक बार भगवान शिव नंदी पर सवार होकर माता पार्वती के साथ भ्रमण करते हुए अपने ससुराल पहुंच गए जहां पर माता पार्वती की सखियों ने उनका स्वागत जलाभिषेक करके किया और तभी से शिव पर जलाभिषेक करने की परंपरा आरंभ हुई जो कि आज तक चल रहीहै,इतना ही नहीं इसके आगे की कथा आती है कि देवताओं और असुरों ने मद्रा चल पर्वत को मथनी बनाकर जो समुद्र मंथन किया था वह श्रावण मास ही था जिसमें से निकलने वाला हलाहल विषकोपीकर भगवान शिव नीलकंठ कहलाए उन्होंने स्वयं विषपान करके सृष्टि को विनाश से बचाया कालकूट नामक इस बीच की गर्मी से शांति हेतु देवताओं ने उन पर जलाभिषेक किया।

आषाढ़ मास की गुरु पूर्णिमा
के समापन उपरांत श्री हरि विष्णु भगवान है। 4 माह के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं इसके उपरांत ही मृत्युलोककी समूचीव्यवस्था भगवान शिव के अधीन हो जाती है श्रावण मास में शिव के निमित्त किया गया पूजन _अर्चन विशेष फलदाई होता है।
*इस मास में जहां एक और शैवएवं नाथ परंपरा के साधक गण.वीरभद्र साधना, महाकाल भैरव साधना ,शिवसप्पखप्पर प्रयोग तथा अघोरेश्वर मंत्र साधना इत्यादि करते हैं।* वहीं दूसरी ओर गृहस्थ जीवन यापन करने वाले लोग भी भगवान आशुतोष की पूजा अर्चना में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखते भगवान शिव तो अवढरदानी है ,कहा भी गया है कि आशुतोष तुम अवढर दानी आरति हरहु दीन जनु जानी, इस श्रावण मास में भगवान शिव सभी को मन वांछित फल प्रदान करते हैं, क्या सन्यासी क्या बैरागी और क्या गृहस्थी सभी अपने-अपने ढंग से भगवान आशुतोष को रिझाने का भरसक प्रयास करते हैं। उन पर जलाभिषेक के साथ ही बेलपत्र धतूरा ,विजया इत्यादि चढ़ाते हैं क्योंकि एक बेलपत्र जहां एक ओर सनातनी संस्कृति के रक्षक पोषक व संहारक त्रिदेवों का द्योतक है। वहीं दूसरी ओर श्रावण मास में जलवायु परिवर्तन के कारण जब सूर्य और चंद्र दोनों का ही प्राय: दर्शन नहीं होता है तो ऐसी स्थिति में हमारी जठराग्निभी हमारे शरीर में ठंडी हो जाती है जिससे बैक्टीरिया इत्यादि बढ़ जाते हैं। ऐसी स्थिति में वात पित्त और कफ रोगों की प्रचुरता भी होती है जिन्हें नष्ट करने की क्षमता बेलपत्र में होती है जिस प्रकार से औषधीय गुणों के कारण हम तुलसी की पूजा करते हैं ठीक उसी प्रकार से हमें भी बेलवृक्ष कीपूजा करनी चाहिए। इसकी परिक्रमा करनी चाहिए तथा

भगवान शिव को बेलपत्रचढ़ाना चाहिए वर्षा काल में बैक्टीरियापनपते हैं शरीर को निरोगी रखने के लिए हमें चाहिए कि हम सूर्योदय पूर्व बिस्तर छोड़ दें और तत्पश्चात दूर्वा, धतूरा ,तुलसी,बिल पत्र, फल फूल ,चंदन, दिव्य औषधियों का चयन करें यकीन मानिए इनका स्पर्श करते ही आपके अंदर एक उमंग आएगी ऊर्जा का संचार होगा और सात्विकता का प्रसार होगा आपकी आत्मसामर्थ जगेगी और आपके अंदरदेवत्वजागृत होगी ,बेलपत्र, तु,लसी, सदाबहार ,समय ,हल्दी, विजया ,दुर्वातथानीमआदिपर जब वैज्ञानिकों ने शोध कियातो वे हतप्रभ रह गए पूरी की पूरी पश्चिमी सभ्यता अचंभितरह गई कीआखिर सनातन संस्कृति में किस ढंगकी जीवन शैली है और हमारे यहां की औषधियों के दिव्य गुणों से ही प्रभावित होकर लोग इन्हें पेटेंट करा रहे हैं।
क्योंकि वह जान चुके हैं कि इनमें प्राण सत्ता है हम कितने जन्मों की यात्रा करके आए पता नहीं, कई कई जन्मों के संस्कार हमारे साथ चलते हैं,यदि हम अब कि नहीं सुधरेंगे तो कभी नहीं सुधरेंगे अतः श्रावण मास में भगवान शिव से जो चाहो मांग ले भगवान भोलेनाथ हमें वह सभी देंगे जो हमें अपेक्षित है॥
सोनौली संयास आश्रम के महंत स्वामी अखिलेश्वरानंद सरस्वती महाराज की कलम से

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

Translate »
  1. ब्रेकिंग न्यूज़: ऊ०प्र०- जिले की हर छोटी बड़ी खबर लाइव देखने के लिए
  2. जुड़े रहे इंडोनेपालन्यूज़ के फेसबुक पेज से, शहर के हर छोटी बड़ी खबर हम आपको लाइव दिखाएंगे