नागमंचमी को क्‍यों होती है नागों की पूजा जाने।

नागमंचमी को क्‍यों होती है नागों की पूजा जाने।

नागमंचमी को क्‍यों होती है नागों की पूजा जाने।

आई एन न्यूज गोरखपुर डेस्क:
नागपंचमी का त्योहार आज शनिवार को परंपरागत रूप से आस्था व श्रद्धा के साथ मनाया जाएगा। कोरोना काल में परंपरागत चिक्का-कबड्डी का खेल, समूह में झूला झूलना आदि कार्यक्रम नहीं होंगे। फिर भी कोविड नियमों का पालन करते हुए आस्था व श्रद्धा का यह त्योहार हर घर में मनाया जाएगा। नाग देवता की पूजा की होगी। विविध पकवान बनेंगे और लोग एक-दूसरे को नागपंचमी की बधाई देंगे।
मान्यता है कि इस दिन नाग देवता का पूजन करने से सात पीढिय़ों तक सर्पदंश का भय नहीं रहता है।
स्वामी अखिलेश्वरानंद सरस्वती महाराज के अनुसार शनिवार को सूर्योदय 5.21 बजे और पंचमी तिथि पूर्व दिन से ही प्रारंभ होकर इस दिन दोपहर बाद 1.53 बजे तक है । इस दिन उत्तराफाल्गुनी और हस्त नक्षत्र होने से चंद्रमा की स्थिति कन्या राशिगत है। परिगणित और शिव नामक योग होने से नाग पूजन के लिए यह उत्तम दिन है।
बता दे कि पुराणों में अनादिकाल से ही देवताओं के साथ नागों के अस्तित्व के प्रमाण हैं । नागों के संसार को नागलोक की संज्ञा दी गई है । समुद्र मंथन के महान कार्य में नागराज वासुकि ने अपना शरीर रस्सी के रूप में समर्पित किया था । देवताओं की माता अदिति की सगी बहन कद्रू के पुत्र होने से नाग देवताओं के कनिष्ठ भ्राता हैं । हमारी पृथ्वी का भार शेषनाग द्वारा फन के उपर धारण किया जाना शास्त्रों में वर्णित है । भगवान विष्णु ने नागों को अपनी शैय्या बनाकर विश्व कल्याण का कार्य पूरा किया है । भगवान शंकर के गले में अनेकों विषधर नाग सदा उनके शरीर की शोभा बढ़ाते हैं।
नागपंचमी के इतिहास के बारे में श्रीवाराह पुराण में लिखा है कि सृजन शक्ति के अधिष्ठाता ब्रह्मा जी ने शेषनाग को अलंकृत किया और समस्त मानवों ने उनके इस कार्य की प्रशंसा की । कहा जाता है कि तभी से इस पर्व को इस जाति के प्रति श्रद्धा प्रदर्शित करने का प्रतीक मान लिया गया है । यजुर्वेद में भी नागों के पूजन का उल्लेख मिलता है।

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