बुद्ध पूर्णिमा पर लुंबिनी में उमड़े अनुयायी

बुद्ध पूर्णिमा पर लुंबिनी में उमड़े अनुयायी

बुद्ध पूर्णिमा पर लुंबिनी में उमड़े अनुयायी
– सप्ताह भर चलने वाले मेले में शरीक होंगे देशी-विदेशी सैलानी

आईएन, न्यूज, लुंबीनी, नेपाल:बुद्ध पूर्णिमा पर लुंबिनी में उमड़े अनुयायी
भगवान गौतम बुद्ध के जन्म दिन के रुप में मनाई जाने वाली बुद्ध पूर्णिमां पर लुंबिनी में काफी चहल पहल है। बौद्ध अनुयायियों के साथ साथ हजारों विदेशी सैलानी बुद्ध की जन्म स्थली के दर्शन को उमड़ पड़े हैं। नेपाल प्रशासन ने यहां एक सप्ताह तक बुद्ध पूर्णिमा मेले का आयोजन किया गया है।

इतिहास पर नज़र डाले तो—

आज से लगभग ढ़ाई हजार वर्ष पहले वैशाख मास की पूर्णिमा के दिन गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था। जब भारत में घोर अंधविश्वास, धार्मिक पाखंड, जाति-प्रथा व बलि प्रथा
जैसी अनेक अमानवीय कुरीतियां फल-फूल रही थीं। समाज की तार्किक शक्ति क्षीण हो गई थी। मानव-मानव में भेद करने वाली जाति व्यवस्था अपनी पराकाष्ठा पर थी, एकता सामंजस्य और मेल-मिलाप का नामोनिशान नहीं था। इन्हीं परिस्थितियों में महामानव बुद्ध का कपिलवस्तु के राजा शुद्धोदन के घर प्रादुर्भाव हुआ। 29 साल की उम्र में ही अपना राज-पाट तथा पत्नी और पुत्र राहुल को सोई अवस्था में त्यागकर दुनिया के दुख का कारण ढूंढने संसार में निकल पड़े।

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गौतम बुद्ध का जन्म :-

जीवों की हत्या रोकने के लिए मायादेवी के गर्भ से भगवान स्वयं बुद्ध के रूप में अवतरित हुए। गौतम बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोदन था। उनकी राजधानी कपिल वस्तु थी। भगवान बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। सिद्धार्थ के जन्म के बाद उनकी माता का देहांत हो गया। सिद्धार्थ का पालन-पोषण उनकी विमाता गौतमी देवी ने किया। ज्योतिषियों ने उनके जन्म पर ही घोषणा कर दी थी कि राजकुमार या तो चक्रवर्ती राजा होंगे या विरक्त होकर जगत का कल्याण करेंगे। महाराज शुद्धोदन ज्योतिषियों की इस बात से परेशान हो गए और उन्होंने राजकुमार के लिए बहुत बड़ा भवन बनवाया। उस भवन में दुख, रोग और मृत्यु की कोई बात न पहुंचे इसकी कड़ी व्यवस्था की गई। राजकुमार सिद्धार्थ का विवाह राजकुमारी यशोधरा से हुआ था। उनके पुत्र का नाम राहुल था।

अपनाया वैराग्य :-

राजकुमार सिद्धार्थ अत्यंत दयालु थे। एक बार उन्होंने पिता से नगर देखने की आज्ञा मांगी। राज्य की ओर से ऐसी व्यवस्था की गई कि राजकुमार को नगर में कोई दुखद दृश्य नजर न आए। मगर मार्ग में बीमार व्यक्ति, बुजुर्ग तथा एक व्यक्ति की शव यात्रा देख वह विचलित हो गये। और ऐसा क्यों होता है तथा ईश्वर की तलाश में अपना सब कुछ छोड़ वैरागी हो गये।

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