कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव——–

कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव--------

कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव——–

आज 11 अगस्त कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव का दिन है।
हर वर्ष हिन्दी माह के भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष के अष्टमी तिथि को और रोहिणी नक्षत्र में कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है।
हर वर्ष कृष्ण जन्माष्टमी को पूरे देश भर में एक महापर्व के रूप में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है । इस दिन लोग भगवान श्री कृष्ण के नाम से वर्त रखते है और बड़े ही श्रद्धा – भक्ति के साथ लोग भगवान श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करते है । किर्तन भी करते है। मेले का आयोजन किया जाता है और दही हांडी का कार्यक्रम भी किया जाता है।
लेकिन इस वर्ष कोरोना वायरस (कोविड 19) महामारी के चलते घरों में ही रहकर भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाएंगे
और इस साल देश भर में दही हांडी का भी कार्यक्रम नही किए जाएंगे।

क्यो मनाया जाता है कृष्ण जन्माष्टमी

माना जाता है कि 5000 वर्ष से भी अधिक समय से पहले देवकी और वासुदेव ने मथुरा की जेल में आधी रात को एक दैवीय बालक को जन्‍म दिया था। वह दैवीय बालक कोई और नहीं विष्‍णु अवतार भगवान श्री कृष्‍ण थे। उस दिन भाद्र मास के कृष्‍ण पक्ष की अष्‍टमी थी। इस उपलक्ष्‍य में हर साल कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी का उत्‍सव मनाया जाता है।
भगवान श्री कृष्ण के जन्म को लेकर लोककथा है की ‘द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था। उसके आततायी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन थी जिसका नाम देवकी था, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था। एक समय कंस अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था।रास्ते में आकाशवाणी हुई- ‘हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है। इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा।’ यह सुनकर कंस वसुदेव को मारने के लिए उद्यत हुआ।तब देवकी ने उससे विनयपूर्वक कहा- ‘मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। बहनोई को मारने से क्या लाभ है?’कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया। उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया।
वसुदेव-देवकी के एक-एक करके सात बच्चे हुए और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला। अब आठवां बच्चा होने वाला था। कारागार में उन पर कड़े पहरे बैठा दिए गए। उसी समय नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था।उन्होंने वसुदेव-देवकी के दुखी जीवन को देख आठवें बच्चे की रक्षा का उपाय रचा। जिस समय वसुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जो और कुछ नहीं सिर्फ ‘माया’ थी। जिस कोठरी में देवकी-वसुदेव कैद थे, उसमें अचानक प्रकाश हुआ और उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए। दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े। तब भगवान ने उनसे कहा- ‘अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं।
तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंदजी के घर वृंदावन में भेज आओ और उनके यहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस के हवाले कर दो। इस समय वातावरण अनुकूल नहीं है। फिर भी तुम चिंता न करो। जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे, कारागृह के फाटक अपने आप खुल जाएंगे और उफनती अथाह यमुना तुमको पार जाने का मार्ग दे देगी।’उसी समय वसुदेव नवजात शिशु-रूप श्रीकृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और अथाह यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे। वहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए। कारागृह के फाटक पूर्ववत बंद हो गए।अब कंस को सूचना मिली कि वसुदेव-देवकी को बच्चा पैदा हुआ है।उसने बंदीगृह में जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा, परंतु वह कन्या आकाश में उड़ गई और वहां से कहा- ‘अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारनेवाला तो वृंदावन में जा पहुंचा है। वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा।’ यह है कृष्ण जन्म की कथा।

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